आज प्रायः यह देखा जा रहा है की पुज्य साधू साध्वी भगवंत भी भगवान् महावीर के त्याग मार्ग को छोड़ कर सांसारिक आडम्बरों में फंसते जा रहे हैं। परमात्म भक्ति के नाम पर अधिकांश जगह महापुजनों का आडम्बर देखा जा रहा है। पूज्य साधू साध्वी भगवंत भी इन्हे प्रोत्साहित करते हैं। इन पूजाओं में प्रायः कर के अरिहंत परमात्मा के स्थान पर देवी देवताओं को महत्व दिया जाता है। यदि परमात्मा की पूजा इनमे होती भी है तो मात्र नाम के लिए। तथाकथित भक्त गण भी अधिकांशतः भौतिक सुख व सांसारिक कामनाओं के लिए इन पूजाओं में सम्मिलित होते हैं।
इसी तरह आज अनेकों साधू साध्वी गणों के अपने अपने प्रोजेक्ट हैं जिन्हें पुरा करने में ही उनकी दिलचस्पी रहती है। उन प्रोजेक्टों के निर्माण, संचालन आदि में उनका बहुत समय चला जाता है। वे उपदेशक के स्थान पर संचालक बनते जा रहे हैं। प्रायः उन प्रोजेक्ट्स के ट्रस्टी गण उन के पसंदीदा लोग होते हैं एवं निरंतर उनके संपर्क में रहते हैं। साधू साध्वी गण धन संग्रह के लिए भक्त जानो को सिर्फ़ प्रेरित ही नहीं करते अपितु अनेक समय उन पर दबाव भी डालते हैं। धन का इस्तेमाल भी उन साधू साध्विओं की इच्छा एवं आदेश के अनुसार होता है। जैन धर्म के अनुसार साधू साध्विओं का व्रत तीन करण व तीन योग से होता है। अर्थात वे न तो मन वचन काया से कोई सांसारिक कार्य करते हैं न कराते हैं और न ही उसका अनुमोदन करते हैं। परन्तु उपरोक्त कृत्य में सांसारिक कार्य कराना ही पड़ता है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से व्रत का भंग होता है।
मेरा सभी सुज्ञ जनों से निवेदन है की इस विषय पर विचार कर जिन आज्ञा अनुसार प्रवृत्ति करने पर वाल दें।
धन्यवाद
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
जैन धर्म की मूल भावना भाग 3
जिन मंदिर एवं वास्तु
प्रस्तुति:
ज्योति कोठारी
Rani Abbakka Chowta-The brave Queen of Tulu Nadu
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Introduction Rani Abbakka Chowta (sometimes spelled Abbakka) is remembered
as a warrior-queen from the 16th-century Tulu Nadu region of coastal
Karnataka. ...

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